नहीं चाहिए , हाँ आज
अपने आप से भी बोल दिया था, की नहीं चाहिए .. शायद इसीलिए आज ५ मिहनो में जो न किआ
और न जिसके बारे में जनंना चाहा वही अपने गूगल में सर्च कर रही थी . "कैन वी डु
एबॉर्शन इन फिफ्थ मंथ?"
ये नहीं चाहिए वह अपने
आप से उस समय से कह रही थी , जब से उसने वापस अंकित के साथ अपना रिश्ता डिवोर्स के
पड़ाव तक आते आते , फिर एक नयी आशा के साथ शुरू किआ |.
पर अब वह पहले जैसी सुलोचना
ना थी | अब वह हर चीज़ को हर नजरिये से देखती थी | वह डरी हुई थी बीते हुए कल से | अंकित
से भी अब उसे पहले जैसा वो अँधा प्यार ना था और शायद अब तो विश्वास भी नही था |
अंकित बदल गया था , उसे
दिखता था पर बोलने और मानने से वह डरती थी
| कुछ ५-६ महीने साथ रहने के बाद पता चला , की वह माँ बनने वाली है - अंकित
खुश था पर सुलोचना फिर से सोच में थी - की क्या अब उसकी ज़िन्दगी फिर से ख़त्म हो जाएगी,
क्युकी जिस बीच उन् दोनों का रिश्ता ठीक नहीं चल रहा था , उसने अपने लिए नए सपने और
नई मंजिले तय कर ली थी | वह अब उड़ना चाहती थी - डांस , ट्रेवलिंग , ट्रैकिंग और योगा
| पर इस खबर ने उसे फिर उसी दोराहे पे ला के खड़ा कर दिया था |
इन बीते हुए ५ महीनो
में कई बार वो दोनों इस बात पर लड़ चुके थे , कई बार ये सोच हावी हो चुकी थी के ये सही
नहीं हो रहा है , कई बार मन ज़िद करता था के नहीं चाहिए ये सब, पर हर बार अंकित उसे
समझाने में कामयाब हो ही जाता था और कही न कही सुलोचना भी आधे मन्न से ये चाहती तो
थी |
पर आज बहुत लड़ाई हुई,
आज फिर वही सब दोहराया गया, और आज अंकित का भी पारा उसके बस में ना रहा | लड़ाई की वजह
वही थी, पुरांना बीता बुरा समय | जो बात आज तक सुलोचना के मन में थी, की उसके डर ने
आज तक उसे अपने बीते हुए बुरे समय से निकलने नहीं दिया, वही आज अंकित ने जुबां से कह
दिया था, की वो बीता समय न भूल रही है ना उसे भूलने दे रही है | अंकित अपनी भूल कई
बार मान चूका था और वह भी सुलोचना के साथ आगे जीना चाहता था | पर सुलोचना ने बहुत कुछ
देख लिया था और अब वह अंकित के साथ नए सपने देखने से भी डरती थी | साथ और डर दोनों
साथ चल रहे थे और उस पल ऐसा लगा की की डर जीत गया |
सुलोचना अपने आपको वाशरूम
में बंद करके रो रही थी और फ़ोन पे एबॉर्शन के बारे में सर्च कर रही थी .... तभी दरवाजे पे ज़ोर से दस्तक हुई और दूसरी और
अंकित खड़ा था ... उसे लग गया की उसने गलत बोल दिया है और अब वह किसी भी तरह सुलोचना
को माना लेना चाहता था ...वह दरवाज़े पे दस्तक देता रहा ..कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला
... सुलोचना चुप थी, उसकी आखे सूजी हुई थी और उसने अंकित से कहा, "अंकित मुझे
ये बच्चा नहीं चाहिए " | अंकित बहुत डरा हुआ था कि कही उसके कुछ भी बोलने का गलत
मतलब न निकल जाये | फिर उसने बहुत हिम्मत करके सुलोचना से पूछा " क्या ये बच्चा
न होने से सब कुछ ठीक हो जायेगा ?" और "अगर ये नहीं चाहिए तोह फिर क्या चाहिए?"
इन सवालो के बाद कुछ
देर के लिए सन्नाटा सा छा गया | दोनों बिस्तर के दोनों कोनो पे बैठ कर अपने अपने खयालो कि उधेड़ बुन में थे | पर आज सुलोचना के पास
अंकित के सवालो के जवाब नहीं थे | पर सुलोचना ये भी मानने को त्यार नहीं थी कि सब कुछ
ठीक है | उसने झल्लाते हुए अंकित से कहा " ठीक है | तुम्हे बच्चा चाहिए तो मैं
पैदा करके उसे तुम्हे दे दूंगी, और फिर मैं चली जाउंगी " |
ये सुन कर अंकित बिस्तर
से उठा और कमरे से बाहर चला गया | ये देख सुलोचना बुरी तरह झल्ला गयी | उसे यक़ीन हो
रहा था कि अंकित को सिर्फ बच्चे से ही मतलब है | उसके मन का डर सच था, अंकित को उससे
प्यार नहीं था | वो झूठा और मतलबी था | आज भी वो उसको छोड़ के चला गया | सुलोचना को
अब किसी पे विश्वास नहीं था |
वो बिस्तर पे बैठे इन्ही
सब खयालो से लड़ रही थी के तभी कमरे का दरवाज़ा खुला, और अंकित हाथ में दो चाय के कप
ले के आया | उसने एक कप सुलोचना कि तरफ बढ़ाया | सुलोचना ने मुँह घुमा लिया | अंकित
ने दोनों कप साइड टेबल पे रखे, और सुलोचना का हाथ अपने हाथो में ले के बोला "
क्या तुम्हे सच में ये लगता है कि मुझे सिर्फ बच्चा चाहिए, सिर्फ बच्चे से ही मतलब
है? अगर हाँ, तोह आज तो तुमने मेरा काम कर दिया ये बोल के कि बच्चा पैदा करके मुझे
दे के चली जाओगी | अब तो मुझे तुम्हारे पास
आने कि ज़रूरत ही नहीं | तुम्हे मानाने कि ज़रूरत ही नहीं | पर मैं आया हूँ और आता रहूँगा,
क्यों कि मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, तुम चाहिए | और अगर तुम्हे मुझपे विश्वास नहीं है,
तो न सही, पर इस बात का तर्क तो देखो | मैं बार बार पास आता हूँ क्यों कि मैं तुम्हारे
साथ रहना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ खुश रहना चाहता हूँ | पुरानी बातों को भूल कर
मेरे साथ आगे बढ़ो | वक़्त लगेगा पर उस वक़्त को साथ में बिताते है | " ये कहते कहते
अंकित हँस दिया, और हँस के बोला " और अगर मुझसे नाराज़ भी हो, तो अकेले इतनी तकलीफ
उठा कर बच्चा पैदा करके अपने आप को क्यों दुःख दे रही हो ? मुझे भी इस ज़िम्मेदारी में
अपने साथ ले के मुझसे बदला लो,, मुझे दुःख दो "|
ये सुन के सुलोचना भी
हँस पड़ी | हँसते हुए बोली के चाय ठंडी हो गयी है, इसको गरम करके लाओ |