Sunday 8 December 2019


                                    ||| इच्छाएं |||


बस बार बार एक ही ख्याल मन को खाये जा रहा था , कि क्या अब मुझे भी अम्मा कि तरह चिकन मटन खाना मना हो जायेगा |
आज भी वो दिन याद है मुझे जब दद्दा मेरे लिए लड़का देख रहे थे और
उनकी और मेरी एक ही शरत थी कि लड़का वही चलेगा , जो चिकन मटन खाये और खाने दे|
उस जमाने में जहा लड़की होना ही एक भार माना जाता था , जहाँ हर पर एक युध्य चलता रहता था जैसे उसे पढ़ाये या नहीं और पढ़ाये तोह कितना , कि शादी के लिए लड़का मिले | वहाँ हमारी ऐसी शर्ते सुन कर तोह सगेसम्बन्धी हस  ही पड़ते थे | भाभी तोह ताना भी मारा करती थी कि मिल चुका लड़का , अब तोह सारी जिंदगी के राशन का इंतेज़ाम करलो , उस पे दद्दा ऊंची आवाज़ मे बोल पड़ते थे कि एक ही तोह शौकहै मेरी बहना का और अगर मै उसका भी ध्यान ना दे पाया तोह या फायदा मेरे भाई होने का |
वैसे लड़का मिलने में उतनी भी दिक्कत नहीं हुई और जब हमने सुना कि लड़के कि भी एक शरत है कि लड़की शादी के बाद उनके साथ सहर जाये तोह दद्दा भी इस रिश्ते से फुले ना समाये |
बस फिर  क्या था शादी एक बाद से आज तक जैसे भी दिन गुज़ारे पर किसी के डर या दबाब से अपनी इच्छाएं नहीं मारी|
और आज पैसठ कि उम्र में और  जब वह मेरे सामने बेसुध पड़े थे  तोह ना जाने मेरे भी मन  में यह कैसे ख्याल आ रहे थे | सोच रही थी , यह समाज कि कैसी रीथ है , जहा आदमी के मर जाने पे  औरत को कभी सती होना पड़ता था और  आज भी अपनी साडी इच्छाएं का तयाग करना पड़ता  है |
तभी मेरे बड़े बेटे ने आवाज़ दी , " समशान जाने कि सभी तैयारी हो गई है और कमरे में आया और मेरे कानमें आ कर बोला , अम्मा पिता जी जाते वक़्त बोल गए थे , " सरिता कसम है तुजे , जो तूने मेरे जाने के बाद चिकेन मटन खाना छोड़ा , सोच ले मेरी आत्मा भटकती रहेगी"|


                                                                 ||| हायरे व्हाट्सप्प |||

महीने हो  गए थे और अब कविता अक्सर मोबाइल पे शॉपिंग करते ही दिखती थी|उसका यह  पहला बच्चा था और वो उसके आने की खुशी में , दुनिया की सारी चीज़े खरीद लेना चाहती थी | आज कल ऑनलाइन की दुनिया ने तोह हमारी मुश्किलें ही आसान कर दी है | एक बार बस डिटेल्स डालो और और फिर कभी भी कही से भी जो चीज़ पसंद आये उसे फटा फट आर्डर करलो | कविता अपने खली समय में ऑनलाइन ब्लोग्स , शॉपिंग और तरह तरह के अप्प्स पढ़ा और टॉय किआ करती थी |
उसने अब तक तोह बच्चे के लिए बेबी केयर प्रोडक्ट्स , उसके खिलौने , कपडे और जाने क्या क्या चीज़े खरीद लिए था |
कविता को ऑनलाइन अप्प्स बोहोत ही आकर्षित करते थे | जैसे "अपने होने वाले बच्चे का जन्म समय जानिए " || माना ये सब बाते सच होने के सिर्फ % चंगेस होती है पर ये मन को एक निर्मल अनंदा दे जाती  है | कविता तोह ऎसे कई व्हाट्सप्प ग्रुप कि मेंबर भी थी जहा सब कुछ ना कुछ ऐसा मिलता जुलता शेयर किआ करते थे | मज़े की बात यह है कि ये सरे अप्प्स ऑनलाइन पे फ्री है और इंटरनेट के अनलिमिटेड योजनाओ ने तोह इससे मिलने वाले निर्मल आनंद पे चार चाँद ही लगा दिए है |
एक रात कविता को नींद नहीं रही थी और दूसरे दिन छुट्टी होने के वजह से  सुबह ऑफिस के लिए उड़ने का टेंशन भी नहीं था सो उसने अपना फ़ोन उठाया और टाइम पास करने लगी |
तभी उसकी नज़र व्हाट्सप्प में आये एक मैसेज पे पड़ी जिसमे एक लिंक दिआ था और लिखा था कि " व्हाट विल यौर बेबी लुक लाइक ?" कविता को यह पढ़ते ही लगा कि वह  क्या नई टेक्नोलॉजी है | क्यों ना  इसे भी टॉय किआ जाये |
उसने उस लिंक को क्लिक किआ और कुछ सेकंड में वह डाउनलोड भी हो गया | लॉगिन के लिए एक  आसान सा पॉप उप आया | " क्या आप अपने मोबाइल में  आपके बारे में पहले से स्टोर करी गई जानकारी से लॉगिन करना चाहते है " और बस एक "हाँ" के बटन से कविता उस अप्प कि भी मेंबर बन गयी |   वह अप्प बोहोत ही अनोखा था | उसमे सिर्फ , होने वाले बच्चे के माँ और पिता का एक क्लोज उप तस्वीर  ही अपलोड करना था और कुछ एक मिनट में वह एक होने वाले माता पिता कि सबसे बड़ी जिज्ञासा का उतर देने का दावा कर रहा था |
वह फिर क्या था , कविता ने अपनी और सुरेश कि एक एक तस्वीर अपलोड कर दी और मिनट बाद जोरो से हस पड़ी क्युकी रिजल्ट में जो बच्चे कि तस्वीर आयी थी वह एक विदेशी बच्चे कि थी , जिसकी आखे नीली और  बाल लाल थे | सुरेश , कविता कि हसीं सुन कर उठ गया और जब उसे हसीं का काराण पता चला तोह उसने कविता को फिर से वही बात बोली जो वह उसे हमेशा बोलता रहा था और कविता   उसे नज़र अंदाज़ कर देती थी कि ऑनलाइन पे पड़ी हर चीज़ सही नहीं होती है और आप को सोच समज कर लॉगिन करना चाहिए क्युकी कुछ फ्रॉड भी होते है |
उस दिन भी कविता ने वही किआ | थोड़ी देर टाइमपास कर के वह सो गयी और उसके बाद के छुट्टी के दिन तोह पता ही नहीं चले क्युकी उसकी गोद भराई का समारोह जो था | दिन तोह उसे अपना मोबाइल उठाने का भी वक़्त नहीं मिला | दिन बाद ऑफिस जाते वक़्त उसने सोचा कि चलो अब सभी को अपने गोद बरई कि तस्वीरें शेयर करती हू पर नोटिफिकेशन के पहले मैसेज को पड़ते ही उसे लगा मनो उसके पैरो कि नीचे से जमीन खिसख गई हो | उसके क्रेडिट कार्ड से कुछ . लाख डेबिट हो गए थे | थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद उसने अपने आप को सांत्वना देते हुए कहा कि सायद सुरेश को कोई जरुरत पड़ी हो और उसने यूज़ किआ हो | उसने थोड़ा डरते और सकुचाते हुए सुरेश को कॉल किआ पर  सुरेश के ना ने उसके आखो के सामने अँधेरा सा छा गया | वह सीधे घर वापस गई और सुरेश में भी क्रेडिट कार्ड के कॉल सेंटर पे पूछताछ करना शुरू कर दिआ पर अब तक बोहोत देर हो चुकी थी | यह पैसे उसी अप्प के निर्मल आनंद कि लॉगिन चार्जेज थे जो कि कविता ने  बिना सोचे समजे एक हाँ से गवा दिए थे |
इन् सब के बीच कविता कि नज़र टीवी पे चल रहे एक विज्ञापन पे पड़ी जिसपे जान हिट में जारी  एक सन्देश पे बात हो रही थी कि " रार बी आई कहता है "
उसे  सुनते ही कविता फूट फूट के रोह पड़ी 

Tuesday 22 January 2019

नहीं चाहिए ...


नहीं चाहिए , हाँ आज अपने आप से भी बोल दिया था, की नहीं चाहिए .. शायद इसीलिए आज ५ मिहनो में जो न किआ और न जिसके बारे में जनंना चाहा वही अपने गूगल में सर्च कर रही थी . "कैन वी डु एबॉर्शन इन फिफ्थ मंथ?"
ये नहीं चाहिए वह अपने आप से उस समय से कह रही थी , जब से उसने वापस अंकित के साथ अपना रिश्ता डिवोर्स के पड़ाव तक आते आते , फिर एक नयी आशा के साथ शुरू किआ |.
पर अब वह पहले जैसी सुलोचना ना थी | अब वह हर चीज़ को हर नजरिये से देखती थी | वह डरी हुई थी बीते हुए कल से | अंकित से भी अब उसे पहले जैसा वो अँधा प्यार ना था और शायद अब तो विश्वास भी नही था |
अंकित बदल गया था , उसे दिखता था पर बोलने और मानने से वह डरती थी  | कुछ ५-६ महीने साथ रहने के बाद पता चला , की वह माँ बनने वाली है - अंकित खुश था पर सुलोचना फिर से सोच में थी - की क्या अब उसकी ज़िन्दगी फिर से ख़त्म हो जाएगी, क्युकी जिस बीच उन् दोनों का रिश्ता ठीक नहीं चल रहा था , उसने अपने लिए नए सपने और नई मंजिले तय कर ली थी | वह अब उड़ना चाहती थी - डांस , ट्रेवलिंग , ट्रैकिंग और योगा | पर इस खबर ने उसे फिर उसी दोराहे पे ला के खड़ा कर दिया था |
इन बीते हुए ५ महीनो में कई बार वो दोनों इस बात पर लड़ चुके थे , कई बार ये सोच हावी हो चुकी थी के ये सही नहीं हो रहा है , कई बार मन ज़िद करता था के नहीं चाहिए ये सब, पर हर बार अंकित उसे समझाने में कामयाब हो ही जाता था और कही न कही सुलोचना भी आधे मन्न से ये चाहती तो थी |
पर आज बहुत लड़ाई हुई, आज फिर वही सब दोहराया गया, और आज अंकित का भी पारा उसके बस में ना रहा | लड़ाई की वजह वही थी, पुरांना बीता बुरा समय | जो बात आज तक सुलोचना के मन में थी, की उसके डर ने आज तक उसे अपने बीते हुए बुरे समय से निकलने नहीं दिया, वही आज अंकित ने जुबां से कह दिया था, की वो बीता समय न भूल रही है ना उसे भूलने दे रही है | अंकित अपनी भूल कई बार मान चूका था और वह भी सुलोचना के साथ आगे जीना चाहता था | पर सुलोचना ने बहुत कुछ देख लिया था और अब वह अंकित के साथ नए सपने देखने से भी डरती थी | साथ और डर दोनों साथ चल रहे थे और उस पल ऐसा लगा की की डर जीत गया |
सुलोचना अपने आपको वाशरूम में बंद करके रो रही थी और फ़ोन पे एबॉर्शन के बारे में सर्च कर रही थी  .... तभी दरवाजे पे ज़ोर से दस्तक हुई और दूसरी और अंकित खड़ा था ... उसे लग गया की उसने गलत बोल दिया है और अब वह किसी भी तरह सुलोचना को माना लेना चाहता था ...वह दरवाज़े पे दस्तक देता रहा ..कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला ... सुलोचना चुप थी, उसकी आखे सूजी हुई थी और उसने अंकित से कहा, "अंकित मुझे ये बच्चा नहीं चाहिए " | अंकित बहुत डरा हुआ था कि कही उसके कुछ भी बोलने का गलत मतलब न निकल जाये | फिर उसने बहुत हिम्मत करके सुलोचना से पूछा " क्या ये बच्चा न होने से सब कुछ ठीक हो जायेगा ?" और "अगर ये नहीं चाहिए तोह फिर क्या चाहिए?"

इन सवालो के बाद कुछ देर के लिए सन्नाटा सा छा गया | दोनों बिस्तर के दोनों कोनो पे  बैठ कर अपने अपने  खयालो कि उधेड़ बुन में थे | पर आज सुलोचना के पास अंकित के सवालो के जवाब नहीं थे | पर सुलोचना ये भी मानने को त्यार नहीं थी कि सब कुछ ठीक है | उसने झल्लाते हुए अंकित से कहा " ठीक है | तुम्हे बच्चा चाहिए तो मैं पैदा करके उसे तुम्हे दे दूंगी, और फिर मैं चली जाउंगी " |

ये सुन कर अंकित बिस्तर से उठा और कमरे से बाहर चला गया | ये देख सुलोचना बुरी तरह झल्ला गयी | उसे यक़ीन हो रहा था कि अंकित को सिर्फ बच्चे से ही मतलब है | उसके मन का डर सच था, अंकित को उससे प्यार नहीं था | वो झूठा और मतलबी था | आज भी वो उसको छोड़ के चला गया | सुलोचना को अब किसी पे विश्वास नहीं था |

वो बिस्तर पे बैठे इन्ही सब खयालो से लड़ रही थी के तभी कमरे का दरवाज़ा खुला, और अंकित हाथ में दो चाय के कप ले के आया | उसने एक कप सुलोचना कि तरफ बढ़ाया | सुलोचना ने मुँह घुमा लिया | अंकित ने दोनों कप साइड टेबल पे रखे, और सुलोचना का हाथ अपने हाथो में ले के बोला " क्या तुम्हे सच में ये लगता है कि मुझे सिर्फ बच्चा चाहिए, सिर्फ बच्चे से ही मतलब है? अगर हाँ, तोह आज तो तुमने मेरा काम कर दिया ये बोल के कि बच्चा पैदा करके मुझे दे के  चली जाओगी | अब तो मुझे तुम्हारे पास आने कि ज़रूरत ही नहीं | तुम्हे मानाने कि ज़रूरत ही नहीं | पर मैं आया हूँ और आता रहूँगा, क्यों कि मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, तुम चाहिए | और अगर तुम्हे मुझपे विश्वास नहीं है, तो न सही, पर इस बात का तर्क तो देखो | मैं बार बार पास आता हूँ क्यों कि मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ खुश रहना चाहता हूँ | पुरानी बातों को भूल कर मेरे साथ आगे बढ़ो | वक़्त लगेगा पर उस वक़्त को साथ में बिताते है | " ये कहते कहते अंकित हँस दिया, और हँस के बोला " और अगर मुझसे नाराज़ भी हो, तो अकेले इतनी तकलीफ उठा कर बच्चा पैदा करके अपने आप को क्यों दुःख दे रही हो ? मुझे भी इस ज़िम्मेदारी में अपने साथ ले के मुझसे बदला लो,, मुझे दुःख दो "|

ये सुन के सुलोचना भी हँस पड़ी | हँसते हुए बोली के चाय ठंडी हो गयी है, इसको गरम करके लाओ |


Saturday 19 January 2019

बीता वक़्त………22, जुलाई ' 1990

पिछले तीन सालो से मेरी याद नहीं आई और आज पिता जी सीधे कॉलेज के हॉस्टल आ पहुंचे , वो भी बिना बताये, और साथ में दो अजीब से प्राणियों के साथ | पर इस अचानक उमड़े प्यार से मैं खुश न थी | मैं अपनी इस दुनिया में खुश थी जहा दोस्त थे जो मुझे समझते थे और एक वो था जो मुझे बहुत प्यार करता था | मुझसे न हो कर भी मेरे जैसा | पर आज पिता जी के अचानक ही प्रकट होने से लग रहा था की मेरी दुनिया मुझसे छिन जाने वाली थी | आज से चार साल पहले तक तो उन्हें मेरा मुँह देखना भी गवारा ना था , पर आज न जाने क्या हुआ ? उन दो प्राणियों में एक मेरी माँ भी थी, जो हमेशा चुप ही रहती थी | उस दिन भी चुप थी जब मेरी बड़ी बेहेन की मौत के बाद उसके ४० साल के पति से मेरा विवाह तय किया जा रहा था | दीदी की मौत उनके पांचवे बच्चे को जन्म देते हुए हुई थी और वो उस वक़्त सिर्फ २८ साल की थी | पर ये कोई विदेशी जोड़ा नहीं था , जो अपने प्यार की निशानिया अपनी ख़ुशी से पैदा किये जा रहा था , बल्कि यहाँ तो वही लड़के की चाह थी , जिसकी वजह से हम चार बहेनो के बाद पैदा हुआ हमारा छोटा भाई , जो आज सिर्फ ४ साल का हुआ है |

मैंने जब से होश संभाला, क्या बनना है ये तो पता नहीं था, पर क्या नहीं बनना है ये पता भी था और इसके लिए लड़ भी सकती थी | इसीलिए बारवी की परीक्षा के बाद इस खूबसूरत प्रस्ताव को ठुकरा कर घर को छोड़ दिया | ज़िन्दगी ने भी साथ दिया | बारवी में टॉप किया और दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी नाम आ गया | फिर क्या था, सब भूल के और सब पीछे छोड़ के दिल्ली आ गयी | यहाँ आने के बाद तो लगा जैसे दुनिया ही बदल गयी | इंग्लिश होनोर्स में बी. ऐ. में दाखिला लिया और एक राह भी मिल गयी | सोचा लेखक बनूँगी और समाज में कुछ न बोल पाने वालो की आवाज़ | यहाँ पर मैं उससे भी मिली, जो मुझसे अलग हो कर भी मेरे जैसा था | वो कम बोलता था और कम हस्ता था, मेरी माँ की तरह, पर उसकी अपनी एक सोच थी, जिसके लिए वो समय आने पर समाज से लड़ भी सकता था | उसने मुझे लाइब्रेरी में घंटो किताबो के बीच बैठना, सिगग्रेट पीना, अपने विचारो को व्यक्त करना और किसी भी विषय पे तर्क करना सिखाया | हम घंटो बातें करते थे, समाज की, अलग अलग सोच की, देश विदेश की, अलग अलग संस्कृतियों की | हमने लिव इन में रहना भी शुरू कर दिया था | और शायद हम प्यार भी करते थे | मेरा खुशनुमा स्वाभाव और कुछ भी कर जाने की हिम्मत उसे बहुत पसंद थी |

पर आज मैं डर गयी थी | क्यों की आज पिता जी और मेरा १७ साल का बनारस के एक हिन्दू परिवार में बितायी ज़िन्दगी मेरे सामने खड़ी थी और मुझे उनसे अपने आज को मिलवाना था, फहद अंसारी को मिलवाना था |